हरताल भस्म
- Dr. Rajeev Ranjan
- 9/3/2023
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- Health
हरताल, जिसे अंग्रेजी में ‘Arsenic Trisulfide ’ कहते है । यह एक धात्विक खनिज पदार्थ है । आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्रों में, चरक एवं सुश्रुत संहिता काल से ही निरंतर चिकित्सा उपयोग में लिया जाता रहा है । हरताल का रासायनिक सूत्र AS2S3 है । आयुर्वेद चिकित्सा की द्रष्टि से, यह खुजली, कुष्ठ, रक्तविकार, वात-पित शामक, मिर्गी एवं बवासीर जैसे रोगों में , उपयोगी होती है ।
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डॉ राजीव रंजन
हरताल के औषधीय गुण
यह पीले रंग की होती है। स्वाद में कषाय एवं उष्ण वीर्य की होती है । गुणों में रक्तविकार दूर करने वाली, मोटापा, मस्से, बवासीर, कुष्ठ, वात एवं कफ का शमन करने वाली, पेट के कीड़े और मिर्गी रोग में , लाभदायक होती है । हरताल को अशुद्ध सेवन करने का निषेध है । अशुद्ध हरताल प्राणघातक साबित होती है ।पहचान
यह खनिज एवं कृत्रिम दोनों रूपों में पाया जाता है । इसके दो भेद पत्रताल एवं पिंडताल मुख्य रूप से मिलते है । इसमें से पत्रताल उत्तम किस्म का हरताल होता है ।जो अनेक परतो वाला होता है । इसमें एक के उपर एक परत रहती है । रंग में सोने जैसा चमकीला पीले रंग का होता है । पिण्डताल हरताल पिंड के जैसा होता है । इसका प्रयोग भस्म निर्माण में नही किया जाता है । यह चमकविहीन उबड़ – खाबड़ पिंड के सदृश्य होता है | हरताल के चार मुख्य भेद माने जाते है- तबकिया हरताल
- वंशपत्री हरताल
- गुव्रिया हरताल
- गोदंती हरताल (सर्वाधिक चिकित्सा उपयोगी)।
शोधन
इसका शोधन करने के लिए, 100 ग्राम हरताल को कूटकर, चावल जैसा मोटा चूर्ण बना लें । इसे सूती कपडे की पोटली में बांधकर, दौलायन्त्र में लटकाए । अब दौलायंत्र में , पेठे के स्वरस में , दौलायंत्र - विधान से , धीमी आग पर, 6 घंटे तक स्वेदन करें। अब इसके बाद, कांच या मिट्टी के बर्तन में नींबू रस में डालकर, भिगों दें। नित्य रस बदल दें , ऐसा 7 दिन तक करें , उसके बाद पानी से धो दें। ( सि. यो. सं. )भस्म बनाने की विधि
इसकी भस्म बनाने के लिए सबसे पहले पलास की जड़ की छाल को, 2 किलो की मात्रा में लेकर, 8 किलो जल में डालकर, क्वाथ का निर्माण किया जाता है । जब जल 1 किलो बचे तब उतार कर छान लिया जाता है । अब, इसे छने हुए पलास के क्वाथ को , फिर से अग्नि पर पकाया जाता है । जब यह शहद की तरह गाढ़ा हो जाये, तब इसे नीचे उतार लिया जाता है | 100 ग्राम शुद्ध हरताल को, खरल में रखकर महीन चूर्ण बना लिया जाता है । अब तैयार पलाश क्वाथ की तीन (3) भावनाएं दी जाती है । भावना देने का अर्थ है सूखे चूर्ण में, इसे मिलाकर फिर से खरल में चलाना एवं सुखाने पर, फिर से पलास क्वाथ को मिलाकर, इसे गीला करना एवं खरल में घोट कर सुखाना । ऐसे तीन बार करना होता है । इसके बाद, भैंस के मूत्र की भावना देकर, छोटी – छोटी टिकिया बना ली जाती है। इन्हें सराव सम्पुट में रखकर, 10 जंगली उपलों की आग में , पकाया जाता है । अब इसे निकालकर, फिर से पलास मूल क्वाथ की तीन भावना देकर 10 उपलों की आग में , फिर से पाक करें । इस प्रकार से 12 बार करने पर, हरताल की भस्म बन जाती है । इस भस्म की परीक्षा की जाती है ।परीक्षा
भस्म परीक्षा के लिए, निर्मित भस्म को , अग्नि पर डाला जाता है। अगर धुंआ दिखाई दे तो , यह अपक्व भस्म है एवं धुंआ नहीं उठे तो, इसे पूर्ण पक्व भस्म माना जाता है । उसे चिकित्सा उपयोग में लिया जा सकता है । उपयोग एवं औषध योग इसके उपयोग से आयुर्वेद चिकित्सा में कस्तूरी भैरव रस, ताल सिंदूर, नित्यानंद रस एवं रक्तपित्तान्तक रस आदि औषधियों का निर्माण किया जाता है | यह विभिन्न रोगों में उपयोगी है फिरंग / Syphilis, कुष्ठ, अर्श, अपस्मार, भगन्दर, नाडीव्रण, रक्त का दूषित होना, अस्थमा, फोड़े – फुंसियाँ वात एवं पित दोष का शमन। रोगों अनुसार मात्रा और अनुपान --------
वात या कफ प्रधान वात रक्त के लिए, हरताल भस्म आधी रत्ती घी के साथ सेवन करके , ऊपर से गिलोय का काढा़ देने से शीघ्र लाभ होता है ।
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कफ प्रधान वात रक्त में , हरताल भस्म आधी रत्ती करंज के पत्तों के रस के साथ, मिश्री मिलाकर दें।
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वात रक्त के शमन के बाद, फौडे़ - फुन्सी, खुजली , शरीर पर चकत्ते आदि रक्त के दूषित होने कारण हो जाते है । ऐसी स्थिति में , आधी रत्ती हरताल भस्म, चोपचीनी का चूर्ण 4 रत्ती मिलाकर, शहद के साथ दें, ऊपर से 20 ग्राम खादिरारिष्ट या महामजिष्ठादि अर्क 20 ग्राम के साथ देना लाभदायक है ।
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कुष्ठ रोग में , हरताल भस्म 2 रत्ती , वाकुची चूर्ण 1 ग्राम, सारिवाद्यासव के साथ देना चाहिए ।
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पुराने उपदंश रोग ( सिफलिश यौन रोग ) में , हरताल भस्म आधी रत्ती , गंधक रसायन 1 रत्ती , अनन्नतमूल का काढे़ या अर्क के साथ देना लाभ देता है ।
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त्वचा रोगों में , हरताल भस्म आधी रत्ती , गिलोय का सत्व 4 रत्ती मिलाकर, शहद के साथ दें। ऊपर से मजिष्ठादि अर्क सेवन कराने से लाभ होता है ।
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शीतांग और कफ प्रधान्य सन्निपात में , आधी रत्ती हरताल भस्म, अदरक के रस के साथ दें। इससे रोगी की बेहोशी और अंगों का शीतांगपना दूर होकर, रोगी शीघ्र होश में आ जाता है ।
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ऊपर को चलने वाला श्वास में , बहेडा़ की मिंगी या सोमलता चूर्ण 2-2 रत्ती के साथ, हरताल भस्म आधी रत्ती , ब्राह्मी चूर्ण 1 ग्राम मिलाकर, घी और मिश्री के साथ देने से लाभ होता है ।
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विषम ज्वर में , कुनैन के स्थान पर, हरताल भस्म देना उचित रहता है ।
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वायु रोग में , दशमूल के काढे़ के साथ दें। सेवन की विधि एवं मात्रा इसका सेवन 1/8 रत्ती से 1/4 रत्ती तक किया जा सकता है । अधिक मात्रा में सेवन, नुकसानदायी हो सकता है । हरताल भस्म का सेवन, वैद्य / आयुर्वेद चिकित्सक के दिशा निर्देशों के अनुसार ही किया जाना !
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- Dr Rajeev Ranjan MD UK
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